सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ अधिनियम, 1995 के कई प्रावधानों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर मंगलवार को केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया।
इससे पहले, सुनवाई शुरू होते ही प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने संकेत दिया कि वह 1995 के अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को देरी के आधार पर खारिज कर देगी।
पीठ ने कहा, ''हम देरी के आधार पर इसे खारिज करेंगे। आप 1995 के अधिनियम को 2025 में चुनौती दे रहे हैं। 1995 के अधिनियम को चुनौती देने पर 2025 में विचार क्यों किया जाना चाहिए?" पीठ ने सवाल किया, जिसमें न्यायमूर्ति एजी मसीह भी शामिल हैं।
जवाब में, याचिकाकर्ता के वकील ने पूजा स्थल अधिनियम, 1991 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर शीर्ष अदालत द्वारा 2021 में जारी नोटिस का हवाला दिया। इसके अलावा, उन्होंने तर्क दिया कि याचिका में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2013 और वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 सहित वक्फ अधिनियम, 1995 की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाया गया है।
केंद्र की विधि अधिकारी अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि यदि मौजूदा याचिका को वक्फ अधिनियम, 1995 को चुनौती देने वाली लंबित याचिकाओं के साथ संलग्न किया जाता है तो कोई कठिनाई उत्पन्न नहीं होनी चाहिए।
एएसजी भाटी ने कहा कि शीर्ष अदालत ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वह वक्फ अधिनियम, 1995 को चुनौती देने वाली याचिकाओं के साथ-साथ हाल ही में लागू वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई नहीं करेगी।
दलीलें सुनने के बाद सीजेआई गवई की अगुवाई वाली पीठ ने केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया और मामले को वक्फ अधिनियम, 1995 की वैधता को चुनौती देने वाली लंबित याचिकाओं के साथ जोड़ दिया।
शीर्ष अदालत के समक्ष दायर याचिका में कहा गया है कि वक्फ अधिनियम, 1995, संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26, 27 और 300 ए के खिलाफ है और इसलिए इसे निरस्त किया जाना चाहिए और समानता, न्याय और अच्छे विवेक के संवैधानिक सिद्धांतों की भावना के साथ एक धर्मनिरपेक्ष कानून बनाया जाना चाहिए।
"अधिनियम मुसलमानों की संपत्तियों के प्रशासन के लिए बनाया गया है, लेकिन हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, सिख धर्म, यहूदी धर्म, बहाई, पारसी धर्म और ईसाई धर्म के अनुयायियों के लिए समान कानून नहीं हैं। अत यह राष्ट्र की धर्मनिरपेक्षता, एकता और अखंडता के पूर्णत विरुद्ध है। संविधान में कहीं भी वक्फ का उल्लेख नहीं है।
इसमें कहा गया है कि यदि अनुच्छेद 29 और 30 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए आक्षेपित अधिनियम बनाया गया है, तो कानून को सभी अल्पसंख्यकों, यानी जैन धर्म, बौद्ध धर्म, सिख धर्म, यहूदी धर्म, बहाई, पारसी धर्म और ईसाई धर्म के अनुयायियों को कवर करना होगा, न कि केवल मुसलमानों को। (आईएएनएस)
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