नई दिल्ली: केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को लोकसभा में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ (ओएनओईबिल) के लिए संविधान संशोधन विधेयक पेश किया।
ओएनओई विधेयक के पेश होने से संसद में एक बार फिर टकराव की स्थिति बन गई, क्योंकि विपक्षी दलों ने इसके ‘संविधान-विरोधी और लोकतंत्र-विरोधी’ स्वरूप का हवाला देते हुए इसे वापस लेने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया।
कांग्रेस नेताओं ने सरकार की तीखी आलोचना करते हुए मांग की कि इस विधेयक को तुरंत वापस लिया जाए।
गृह मंत्री अमित शाह ने इस आरोप का खंडन करते हुए कहा कि प्रगतिशील कानून का विरोध करना कांग्रेस पार्टी की आदत बन गई है।
भाजपा की प्रमुख सहयोगी टीडीपी ने ओएनओई विधेयक के लिए अटूट समर्थन व्यक्त किया और कहा कि इससे न केवल भारत का राजकोषीय बोझ कम होगा बल्कि चुनावी खर्च में भी 40 प्रतिशत से अधिक की कमी आएगी।
ओएनओई विधेयक का जोरदार विरोध करने वाली पार्टियों में तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, शिवसेना (यूबीटी), एआईएमआईएम और अन्य शामिल थीं।
इन सभी ने विधेयक को संविधान पर हमला और ‘लोकतंत्र को खत्म करने और तानाशाही और निरंकुशता लाने’ का एक बेशर्म प्रयास बताया।
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि यह विधेयक सभी क्षेत्रीय दलों को खत्म करने के लिए लाया जा रहा है। उन्होंने भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए कहा, "इसका उद्देश्य एक खास पार्टी के लिए अधिकतम राजनीतिक लाभ प्राप्त करना है और यह राष्ट्रपति प्रणाली की सरकार का मार्ग प्रशस्त करेगा।"
ओएनओई विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के कार्यकाल को एक साथ जोड़कर लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव है। ओएनओपी भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए का लंबे समय से चुनावी वादा रहा है।
राहुल गांधी, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और एमके स्टालिन समेत शीर्ष विपक्षी नेताओं ने एक साथ चुनाव कराने के विचार का पहले ही विरोध किया है और इसे "अधिनायकवादी लोकतंत्र" की ओर कदम बताया है।
रिपोर्ट के अनुसार, लोकसभा अध्यक्ष द्वारा नए पेश किए गए विधेयकों को व्यापक विचार-विमर्श के लिए संसद की संयुक्त समिति को भेजे जाने की संभावना है। (आईएएनएस)
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