सिपाझार: सिपाझार कॉलेज और नंदा तालुकदार फाउंडेशन (एनटीएफ) ने एक संयुक्त प्रयास में, असम की समृद्ध साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए एक बड़ी पहल शुरू की है। इस पहल के तहत, इस क्षेत्र से उत्पन्न दुर्लभ, नाजुक और अप्रचलित कृतियों के डिजिटल संरक्षण पर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं।
यह सहयोगात्मक प्रयास एनटीएफ के प्रमुख कार्यक्रम 'डिजिटाइज़िंग असम' के अंतर्गत आता है, जिसके माध्यम से असमिया साहित्य के 25 लाख से अधिक पृष्ठों को पहले ही संग्रहीत किया जा चुका है।
यह समझौता ज्ञापन क्षेत्रीय लेखकों द्वारा रचित अमूल्य पांडुलिपियों, पुस्तकों और पत्रिकाओं की पहचान और डिजिटलीकरण पर केंद्रित है ताकि ये संसाधन छात्रों, विद्वानों और आम जनता के लिए सुलभ रहें। डिजिटलीकरण के बाद, इन सामग्रियों को असम की साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत के सबसे बड़े उभरते डिजिटल भंडारों में से एक में एकीकृत किया जाएगा।
इस पहल की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह दारांग क्षेत्र की अनूठी सांस्कृतिक, कलात्मक और साहित्यिक परंपरा, दारंगी कला-कृति पर केंद्रित है। इस परंपरा का दस्तावेजीकरण करने वाली अधिकांश जीवित कृतियाँ अभी भी बिखरी हुई, नाजुक या यहाँ तक कि पूरी तरह से खो जाने के खतरे में हैं। इन ग्रंथों को अब इस साझेदारी के तहत व्यवस्थित रूप से संरक्षित और डिजिटल किया जाएगा।
सिपाझार कॉलेज के प्राचार्य डॉ. सत्येंद्र कुमार शर्मा ने समारोह में बोलते हुए इस समझौते को 'सिपाझार और उसके आसपास के क्षेत्रों की साहित्यिक संपदा के संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम' बताया।
पुस्तकालयाध्यक्ष डॉ. निर्मली चक्रवर्ती, जिन्होंने अन्य वक्ताओं के साथ कार्यक्रम का उद्घाटन किया, ने असमिया साहित्य को दुनिया के बाकी हिस्सों तक पहुँचाने के लिए स्थानीय संग्रहों को व्यापक डिजिटलीकरण असम आंदोलन में शामिल करने के महत्व का उल्लेख किया।
इस प्रकार, सिपाझार कॉलेज-एनटीएफ सहयोग स्थानीय साहित्य और विरासत के आधुनिक डिजिटल प्लेटफॉर्म के साथ सम्मिश्रण का प्रतिनिधित्व करता है, जो एक अनुकरणीय मॉडल है जिस पर असम भर के संस्थान राज्य की समृद्ध साहित्यिक परंपराओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए काम कर सकते हैं।