बंगाईगांव में दिगम्बर जैन समाज की ओर से पंचमी महोत्सव का आयोजन कल

बंगाईगांव में दिगम्बर जैन समाज की ओर से पंचमी महोत्सव का आयोजन कल
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बंगाईगांव। दिगंबर जैन समाज बंगाईगांव द्वारा 07 जून शुक्रवार ज्येष्ठ शुक्ल की पंचमी तिथि को श्रुत पंचमी मनाई जायेगी। दिगम्बर समाज के प्रवक्ता रोहित छाबडा ने जानकारी देते हुए बताया कि आगामी 07 जून को दिगम्बर जैन समाज बंगाईगांव के तत्वावधान में अनेको कार्यक्रम आयोजित होंगे जिसमें सर्वप्रथम भगवान का मस्तकाभिषेक, जनकल्याणी मंत्रोउचरन द्वारा व्रहद शांतीधारा व श्री 1008 श्रुत स्कन्ध मण्डल विधान आराधना की जाएगी। सायंकाल को महाआरती ध्यान व धार्मिक चर्चा के कार्यक्रम रखें जाएंगे। उन्होंने बताया इस दीन भगवान महावीर के दर्शन को पहली बार लिखित ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत किया गया था। भगवान महावीर केवल उपदेश देते थे और उनके प्रमुख शिष्य (गणधर) उसे सभी को समझाते थे, क्योंकि तब महावीर की वाणी को लिखने की परंपरा नहीं थी।

उसे सुनकर ही स्मरण किया जाता था इसीलिए उसका नाम श्रुत था। उन्होंने बताया कि जैन समाज में इस दिन का विशेष महत्व है। इसी दिन पहली बार जैन धर्म ग्रंथ लिखा गया था। भगवान महावीर ने जो ज्ञान दिया, उसे श्रुत परंपरा के अंतर्गत अनेक आचार्यों ने जीवित रखा। मान्यतानुसार पुष्पदंत जी महाराज एवं मुनि श्री भूतबली जी महाराज करीब 2000 वर्ष पूर्व गिरनार पर्वत की चन्द्र गुफा में धरसेनाचार्य ने पुष्पदंत एवं भूतबलि मुनियों को सैद्धांतिक देशना दी जिसे सुनने के बाद मुनियों ने एक ग्रंथ रचकर ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी को प्रस्तुत किया। प्रवक्ता ने प्रकाश डालते हुए आगे जानकारी दी कि गुजरात के गिरनार पर्वत की गुफा में ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी के दिन ही पुष्पदंत एवं भूतबलि मुनियों ने जैन धर्म के प्रथम ग्रन्थ श्री षटखंडागम की रचना को पूर्ण किया था। इसी कारण ज्येष्ठ शुक्ल के पांचवें दिन श्रुत पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन से श्रुत परंपरा को लिपिबद्ध परंपरा के रूप में प्रारंभ किया गया था इसीलिए यह दिवस श्रुत पंचमी के नाम से जाना जाता है। इसका एक अन्य नाम 'प्राकृत भाषा दिवसÓ भी है। जैन धर्म के अनुयायियों के अनुसार इस दिन पहली बार जैन धर्म के ग्रंथ को पढ़ा गया था।

प्रवक्ता ने एक कथा के अनुसार बताया कि दो हजार वर्ष पहले जैन धर्म के एक संत धरसेनाचार्य को अचानक यह अनुभव हुआ की उनके द्वारा अर्जित जैन धर्म का ज्ञान केवल उनकी वाणी तक सीमित है। उन्होंने सोचा की शिष्यों की स्मरण शक्ति कम होने पर ज्ञान वाणी नहीं बचेगी। ऐसे में मेरे समाधि लेने से जैन धर्म का संपूर्ण ज्ञान खत्म हो जाएगा। तब धरसेनाचार्य ने पुष्पदंत एवं भूतबलि की सहायता से षटखण्डागम की रचना की और उसे ज्येष्ठ शुक्ल की पंचमी को प्रस्तुत किया। इस शास्त्र में जैन धर्म से जुड़ी कई अहम जानकारियां हैं। इस ग्रंथ में जैन साहित्य, इतिहास, नियम आदि का वर्णन है जो किसी भी धर्म के लिए बेहद आवश्यक होते हैं। ज्ञात हो कि श्रुत पंचमी के इस पावन दिवस पर श्रद्धालुओं द्वारा श्री ग्रंथों को विराजमान कर श्रद्धाभक्ति से महोत्सव के साथ उनकी पूजा-अर्चना की जाती है और सिद्धभक्ति का पाठ किया जाता है।

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